सूरज सिंह, नई दिल्ली
वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली (GST) में नियम 36(4) की वजह से कारोबारियों (Traders) में एक बार फिर से भय का माहौल व्याप्त हो गया है। इसी नियम को लेकर व्यापारियों में आक्रोश पहले से ही था, क्योंकि शुरू से ही इसे व्यापार विरोधी नियम के रूप में जाना गया है। कोविड-19 की वजह से इस साल फरवरी से लेकर अगस्त इस पर रोक रही, जिससे शांति बनी रही। अब चेतावनी के साथ आ रहे ऑटो जेनरेटिड इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की वजह से एक बार फिर से व्यापारियों में भय का माहौल उत्पन्न हो गया है।
राहत के बजाए खौफ पैदा कर रही है सरकार
चेंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) के चेयरमैन बृजेश गोयल का कहना है कि 36(4) नियम की वजह से एक बार फिर से व्यापारी सांसत में हैं। व्यापारियों को ऐसी आशा थी कि कोरोना काल में सरकार कुछ राहत देगी, लेकिन इसके उलट GST के 36(4) नियम का खौफ पैदा कर रहा है। सीमित साधनों से काम करने वाले सामान्य व्यापारी इसका बोझ सहने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में सीटीआई की डिमांड है कि 36(4) को पूरी तरह से खारिज किया जाए।
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क्या है 36(4)
टैक्स एक्सपर्ट सीए राकेश गुप्ता के मुताबिक पिछले साल जीएसटी रेट बढ़ाए बगैर Tax Collection बढ़ाने की एक तरकीब इजाद की गई थी। जिसे GST में 36(4) के नाम से जाना जाता है। हर महीने कितना टैक्स जमा कराना है? अब ये सिर्फ इस बात पर निर्भर नहीं करेगा कि कितना टैक्स बनता है, बल्कि अब ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपके सप्लायर की GSTR-1 तिमाही है या मंथली और स्पलायर ने अपनी GSTR-1 वक़्त पर फाइल की है या नहीं। अगर सप्लायर ने रिटर्न 11 तारीख के बाद फाइल की या उसकी ये रिटर्न मंथली ना होकर तिमाही है, तो टैक्सपेयर को बिक्री पर GST के साथ ही उस सप्लायर से लिए गए माल या सेवा का GST भी चुकाना होगा। अब GST का इनपुट टैक्स क्रेडिट उस महीने दिए जाने का प्रावधान है, जिस महीने की GSTR2B में वो नजर आएगा। सप्लायर द्वारा 11 तारीख तक फाइल किए गए GSTR1 से डीलर का GSTR2B बनता है।
एक उदाहरण के तौर पर समझें
सीए राकेश गुप्ता के मुताबिक, राम मोटर्स मोटर पार्टस का व्यापार करते हैं जिस पर 28 प्रतिशत GST होता है। नवंबर में उन्होंने 50 लाख रुपए की बिक्री की, जिस पर 14 लाख GST बना। नवंबर में ही अपने सप्लायर से 45 लाख रुपए की खरीद की, जिस पर 12 लाख 60 हजार रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा। इस हिसाब से नवंबर का 1 लाख 40 हजार रुपए GST जमा कराना बनता है। 12 दिसंबर को उनके CA ने बताया कि आपको नवंबर का GST 1 लाख 40 हजार रुपए नहीं, बल्कि 14 लाख रुपए देना होगा। इसकी वजह थी कि 11 दिसंबर तक उनके सप्लायर ने अपना GSTR1 फाइल नहीं किया या तिमाही होने की वजह से चाहते हुए भी नहीं कर पाया। अगर वो 1 लाख 40 हजार रुपए GST पेमेंट के साथ रिटर्न फाइल करने की कोशिश करते हैं, तो GST पोर्टल बार-बार चेतावनी देता है कि आप गलत कर रहे हैं, आप कानून तोड़ रहे हैं और आपको इसके परिणाम भुगतने होंगे।
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एक साल पुराने 36(4) के नियम से अब हड़कंप क्यों?
राकेश गुप्ता कहते हैं कि बेशक 36(4) का नियम एक साल से ज्यादा पुराना है, लेकिन इस महीने हड़कंप मचा है। पोर्टल पर ऑटो जनरेट हो रहे ITC को लाल रंग के बॉक्स में दिखाया जा रहा है। क्लेम किया जाने वाला ITC अगर ऑटो जेनेरेटिड ITC से 10 प्रतिशत से ज्यादा है, तो 36(4) नियम के विरूद्ध 3B फाइल करने की वॉर्निंग दी जा रही है। यह भी जानने जैसा है कि सिर्फ वॉर्निंग दी जा रही है। रिटर्न फाइल करने से रोका नहीं जा रहा। ज्यादा ITC क्लेम करने वालों की भी रिटर्न फाइल हो रही है। पर ऐसे टैक्स पेयर पर कानूनी शिकंजा कभी भी जकड़ा जा सकता है। यह डर बना हुआ है।
वक़्त पर फाइल होने वाली GSTR1 के आंकड़े निराशाजनक
बृजेश गोयल का कहना है कि यहां कुल 1 करोड़ 8 लाख रेगुलर डीलर्स हैं, जिनमें से 54 लाख 63 हजार मंथली डीलर्स हैं। अक्टूबर महीने की 15 लाख 30 हजार GSTR1 ही 36(4) के लिए महत्वपूर्ण 11 नवंबर तक फाइल हुई थी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अक्टूबर महीने के लिए 93 लाख डीलर से मिले हुए ITC पर 36(4) का बोझ पड़ा। यानी 7 में सिर्फ 1 सप्लायर से की गई खरीद ही 36(4) की मार से बच पाई। जब इतने कम टैक्स पेयर अपना GSTR1 वक़्त पर फाइल करते हैं, तो 36(4) से होने वाले नुकसान और भी बढ़ जाता है।
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QRMP आने के बाद भी जारी रहेगा 36(4)
एक जनवरी से GST में जो नया सिस्टम QRMP आ रहा है, उसमें भी 36 (4) पहले की तरह लागू रहेगा। इसमें एक फर्क होगा कि जो तिमाही डीलर इसमें आते हैं, अगर वो पहले दो महीने का IFF अगले महीने की 13 तारीख तक फाइल कर देते हैं, तो उसका ITC दूसरी पार्टी को उसी महीने मिल जाएगा।
व्यापारी कारोबार करे या सप्लायर के पीछे पड़े कि रिटर्न भर दो
जीएसटी एक्सपर्ट सीए सचिन अग्रवाल का कहना है कि 36 (4) से ट्रेडर्स में भय की स्थिति है। पहले ही बिजनेस मंदा है। खरीद पर टैक्स देने के बावजूद आईटीसी का पूरा लाभ नहीं मिलने के कारण दोगुना टैक्स की पेमेंट करनी पड़ रही है। यदि सामने वाली पार्टी तिमाही रिटर्न भर रही है, तो व्यापारी यह सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि वो उससे सामान खरीदे या नहीं। क्योंकि इससे मंथली बैनेफिट नहीं मिलेगा। इससे कारोबारियों में डर का माहौल बढ़ सकता है। इस वक्त सारे क्लाइंट्स परेशान है। अब व्यापारी की एक और परेशानी आ गई कि वो अपने सप्लायर के पीछे पड़े कि भई रिटर्न भरो। जब तक वो नहीं भरेगा, तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। ऐसी स्थिति में बिजनेसमैन व्यापार करे या सप्लायर के पीछे पड़े कि रिटर्न भरे। ये प्रोसेस हर महीने है। ट्रेडर्स की मांग है कि जब पक्का बिल मिल गया है, तो बिल की डिटेल डालकर इनपुट का बैनिफिट क्यों नहीं दिया जाए?